सतीश शास्त्री द्वारा प्रकाशित जखई महाराज की आरती

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जखई महाराज की आरती
Jakhai Maharaj Ki Aarti

दोहा- जय-जय जखई देवता, तुम हो परम उदार।
         संकट से नईया करौ, सब भक्तन की पार ।।
         
आरती जखई देव नमामी। कृपा करो भगतन पै स्वामी।।

तुम सम देव नहीं कोई दूजा। किस विधि करें नाथ हम पूजा।।
विनय करें कर जोरि मनाएं। चरणन में हम शीश झुकाएं।।
हम पापी पापिन में नामी। आरती जखई देव नमामी।। १

हम आए हैं द्वार तुम्हारे। संकट मेंटौ नाथ हमारे।।
हम आए हैं तुम्हारी शरणा। रक्षा दीन जानि कैं करना।।
तुम समदर्शी हम हैं कामी। आरती जखई देव नमामी।। २

परहित में तुम प्राण गंवाए। दिल्लीपति के कामे आए।।
तब से देव रूप तुम पाया। तुम्हरो यश भगतन ने गाया।।
सेवक बनूं, न बनूं कुगामी। आरती जखई देव नमामी।। ३

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तुम हो धन्य, धन्य जस तुम्हरौ। बड़ौ भरोसौ हमें तुम्हारौ।।
भक्ति भाव से तुम्हें ध्याते। मनवांछित फल वे सब पाते।।
हमरौ हाथ लेउ तुम थामी। आरती जखई देव नमामी।। ४

पैंढ़त में मन्दिर है तुम्हारौ। वट कौ वृक्ष ताल है भारौ।।
धुर की जात करन जो आते। ध्वजा नारियल भेंट चढ़ाते।।
बन जाए काम भरें हम हामी। आरती जखई देव नमामी।। ५

तुम करौ सवारी घोड़ा की। करें जात सब जोड़ा की।।
मैकासुर गज वाहन साजैं। द्वार खड़े हैं साहब जादे।।
पूजा-पाठ करें जो धामी। आरती जखई देव नमामी।। ६

जो नर आकर पाठ कराते। जखई देव का हवन कराते।।
सच्चे मन से लगन लगाते। पुत्र, विजय, धन, जीवन पाते।।
वे नहिं होत नरक के गामी। आरती जखई देव नमामी।। ७

आरती जखई देव नमामी। कृपा करो भगतन पै स्वामी।।

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