आखिर कौन थे जखई महाराज, क्या है बाबा की हकीकत, Jakhai Maharaj Biography in Hindi

'जय जखेश्वर', 'जय मैकष्वर, एवं 'जय सच्चे दरबार, के गगन भेदी जय घोष के साथ चारों ओर से उमड़ती भीड़ को देखकर भौतिकता की चकाचौंध में डूबी-मानव मन की आँखें अपना अस्तित्व ही खो बैठती हैं।
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Jakhai Baba - Jakhai Biography in Hindi

तो चलिए जान लेते हैं 12वीं सदी के इन महायोद्धा जखई महाराज के बारे में:-

भारतीय इतिहास की 12वीं शताब्दी में तीन राज्य शक्ति के केंद्र थे। 
कन्नौज, दिल्ली और महोबा।
कन्नौज के महाराज जयचंद, दिल्ली के महाराज पृथ्वीराज चौहान और महोबा के महाराज परमालदेव थे।

कन्नौज के राजा जयचंद और महोबा के राजा परमालदेव बहुत अच्छे मित्र थे, लेकिन पृथ्वीराज चौहान की इन दोनों से वैमनस्यता जगजाहिर थी।
कथाओं के अनुसार, भीमकाय शरीर, रौबदार मूँछें, अप्रतिम तेज, साहस और शौर्य के धनी जखेश्वर सिंह और मैकाश्वर सिंह माँ चामुण्डा के बहुत बड़े भक्त थे। 
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बताया जाता है, कि जखई महाराज, दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान के प्रधान सेनापति और एक अच्छे मित्र थे।
इतिहास गवाह रहा है, कि क्षत्रियों में शुरू से एकता का अभाव रहा है और अक्सर अपनी संप्रभुता व बाहुबल स्थापित करने के लिए क्षत्रियों में आपसी युद्ध हुए हैं, जिसका ख़ामियाज़ा मध्यकाल में भारत को भुगतना पड़ा है।
इसी श्रेष्ठता स्थापत्य का एक उदाहरण ये युद्ध था।

देव शक्ति की मुख्य कहानी तो अब शुरू होती है

एक समय की बात है, कि कन्नौज के राजा जयचन्द के घर कोई संतान नहीं थी। थोड़े समय बाद इनके घर में एक पुत्री ने जन्म लिया, जिसका नाम संयोगिता रख दिया। संयोगिता धीरे-धीरे कुछ समझदार हुई।
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एक दिन किसी कार्यवश जयचंद के महलों में दिल्ली के महान चित्रकार पन्नाराय का आगमन हुआ। पन्नाराय ने संयोगिता को दिल्ली के महाराज पृथ्वीराज चौहान की वीर-गाथाएं सुनाईं और बताया, कि पृथ्वीराज चौहान बहुत बड़े वीर योद्धा और देखने में बेहद खूबसूरत हैं। उसी दिन से संयोगिता धीरे-धीरे पृथ्वीराज चौहान से प्रेम करने लगी और मन ही मन खान लिया, कि अब मैं शादी करूंगी, तो सिर्फ पृथ्वीराज चौहान से, अन्यथा किसी से नहीं।

धीरे-धीरे जब संयोगिता बड़ी हुई और जब शादी के योग हुई, तो राजा जयचंद ने अपनी बेटी की शादी के लिए स्वयंवर का आयोजन किया।
दुश्मनी होने के कारण राजा जयचंद ने दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान के लिए निमंत्रण पत्र नहीं भेजा।
 जब संयोगिता को पता लगा, कि हमारे पिताजी ने पृथ्वीराज चौहान के लिए निमंत्रण नहीं भेजा, तो संयोगिता बहुत उदास होने लगी।
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लेकिन उसी समय संयोगिता ने पृथ्वीराज चौहान के लिए एक पत्र लिखा और उस पत्र में स्पष्ट लिखा दिया, कि यदि आप नहीं आए, तो मैं अपनी आत्महत्या कर लूंगी, लेकिन किसी अन्य के साथ शादी नहीं करूंगी। ये पत्र एक गुप्तचर के माध्यम से पृथ्वीराज चौहान के लिए भिजवाया।
जब पृथ्वीराज चौहान को यह पत्र मिला, तो उन्होंने अपनी सेना सजाई और दिल्ली से कन्नौज के लिए चल दिए। और साथ ही पृथ्वीराज चौहान ने अपने मित्र जखई को भी सूचना दे दी।

जब पृथ्वीराज चौहान कन्नौज में पहुंचे, तो उन्होंने देखा, कि जयचंद ने उनकी बेइज्जती करने के लिए अपने मुख्य दरवाजे पर पृथ्वीराज चौहान का पुतला बनवाकर खड़ा कर दिया था।
पृथ्वीराज चौहान मौका पाकर उसी पुतले में प्रवेश कर गए। इधर जैसे ही संयोगिता वरमाला लेकर आई, वैसे ही पृथ्वीराज चौहान ने इशारा कर दिया और संयोगिता ने पृथ्वीराज चौहान के गले में वरमाला पहना दी।
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और पृथ्वीराज चौहान ने संयोगिता का हाथ पकड़कर घोड़े पर बिठा लिया और वहां से चल दिए। इतने में ही जयचंद अपनी सेना को साथ लेकर उनका पीछा करने लगा और उन दोनों की सेनाओं में भयंकर युद्ध होने लगा। इस युद्ध में अनेकानेक सैनिक मारे गए। जब वीर योद्धा लड़ते-लड़ते कन्नौज से मैनपुरी होते हुए जिला फ़िरोज़ाबाद के तहसील जसराना के गांव पैंढ़त में पहुंच गए और पृथ्वीराज चौहान की सारी सेना मारी गई। गांव पैंढ़त के लोगों ने भी जखई और पृथ्वीराज की मदद की।

तब जखई ने अपनी ही तलवार से अपना ही सिर, धड़ से अलग कर दिया और वह सिर पृथ्वीराज चौहान को थमा दिया और कहा, कि तुम संयोगिता को साथ लेकर यहां से निकल जाओ, इन्हें तो मैं अकेला ही घेरे रहूंगा। पृथ्वीराज चौहान अपने मित्र जखई को युद्ध में अकेला छोड़कर नहीं जाना चाहते थे, लेकिन जखई के बार-बार कहने पर पृथ्वीराज चौहान वहां से चल दिए, लेकिन जाते-जाते जखई ने एक चेतावनी दी,कि तुम इस सिर को गलती से भी जमीन पर मत रख देना, अन्यथा मुझे जीवित नहीं पाओगे।
पृथ्वीराज चौहान तो वहां से चले गए, लेकिन वह बिना सिर का धड़ अकेला ही लड़ता रहा।
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इधर रास्ते में संयोगिता को प्यास लगी, तो पृथ्वीराज चौहान ने वह सिर जमीन पर रखकर कुएं से पानी निकालने लगे। पृथ्वीराज, पत्नी के प्यार में इतने अन्धे हो गए, कि वे अपने मित्र के वचनों को भी भूल गए। जैसे ही पृथ्वीराज ने वह सिर जमीन पर रखा, वैसे ही इधर गांव पैंढ़त की भूमि में वह जखई महाराज का धड़ पत्थर का हो गया।

कुछ समय बाद जब पृथ्वीराज चौहान को अपने मित्र के वचनों का ध्यान आया, तो वे उसी धड़ के पास पहुंचे और जैसे ही उन्होंने वह सिर, धड़ से लगाया, वैसे ही वह सिर भी पत्थर का हो गया, अर्थात् जखई महाराज का सम्पूर्ण शरीर एक पत्थर की प्रतिमा में तब्दील हो गया।

जिस समय यह घटना उस जगह पर हुई थी, उस समय वहां पर एक विशाल पीपल का वृक्ष हुआ करता था। फिर धीरे-धीरे जखई बाबा ने पैंढ़त निवासियों को सपना देकर अपना एक विशाल मन्दिर स्थापित करवाया।
तब से यह देवशक्ति गांव पैंढ़त में विराजमान हुई।
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फिर धीरे-धीरे जखई महाराज ने पूर्वी क्षेत्र के लोगों पर अपना प्रकोप दिखाया और पिछले अपराध की वजह से उनसे जात के तौर पर बदला लेने लगे।

अब तो बाबा जी के मन्दिर पर माह के महीना में प्रत्येक रविवार को लाखों लोगों की भीड़ होती है। यहां पर माह के महीना में विशाल मेले का आयोजन भी होता है। 
इनके दर पर कोई भी दीन-दुखी या फिर कोई भी अपने मन की मुराद लेकर आता है, वह कभी उदास वापस नहीं लौटता।

जखई महाराज से सम्बंधित प्रत्येक जानकारी आप इस साइट पर पा सकते हैं।

जय जखई महाराज से जुड़े रहने के लिए हमारी साइट जखई बाबा पर विजिट करते रहें और जखई बाबा की वीडियो देखने के लिए उनके यूट्यूब चैनल Jai Jakhai Maharaj - जय जखई महाराज पर विजिट करें। धन्यवाद!...

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